सती चरित्र की कथा sati charitra shiv mahapuran katha

सती चरित्र की कथा sati charitra shiv mahapuran katha  


सती चरित्र की कथा sati charitra shiv mahapuran katha

(सती चरित्र) 
नारदजी ने पूछा- हे ब्रह्माजी ! सदा शिव योगी होते हुए एक परम स्त्री के साथ विवाह करके गृहस्थी कैसे हो गये ? 

जो पहले दक्ष की पुत्री थी, फिर हिमालय की कन्या हुई, वह सती (पार्वती) किस प्रकार शङ्करजी को प्राप्त हुई ? 

सूतजी कहते हैं कि नारदजी के ऐसे वचनों को सुनकर ब्रह्माजी बोले- हे नारद ! पहले मेरे एक कन्या हुई, जिसे देखते ही मैं काम से पीड़ित हो गया, तब मुझे रुद्र ने धर्म का स्मरण कराते हुए, मुझे मेरे पुत्रों के साथ ही बड़ा धिक्कारा और फिर वे अपने पुत्रों सहित उन्हें ही मोहित करना चाहा, परन्तु मेरे सारे प्रयत्न निष्फल ही रहे । 

तब मैंने निराश होकर फिर शिवजी की आराधना की, तो उन्होंने मुझे बहुत कुछ समझाया । 

सती चरित्र की कथा sati charitra shiv mahapuran katha  


तब मैंने ईर्ष्या तो छोड़ दी, परन्तु हठ नहीं छोड़ा और पुनः रुद्र को मोहित करने के लिए शक्ति का प्रयोग और अपने पुत्र दक्ष से आसिकी, वीरनी नामक कन्या से सती को उत्पन्न कराया । 

वह दक्ष -सुता 'उमा' नाम से उत्पन्न होकर कठिन तप करके रुद्र की स्त्री हुई । तब वे रुद्र स्वतन्त्र होकर भी सन्तान उत्पन्न करने की इच्छा से रूप धारण कर मोहित हुए । 

इधर रुद्र का गृहस्थाश्रम में आकर सुख से कितना ही समय उत्पन्न हो गया और वह परमशान्त, निर्विकार श्रीमहादेवजी की निंदा करने लगा । 

उसने बड़े गर्व से एक विशाल यज्ञ की रचना की । 

जिसमें उसने मुझ (ब्रह्मा) को विष्णुजी को तथा और भी सब देवताओं एवं ऋषि -मुनियों को तो बुलाया, परन्तु श्रीमहादेवजी और अपनी पुत्री सती को नहीं बुलाया इस पर भी एक कौतुक करने के लिये सती अपने पिता के घर चली गई और वहाँ यज्ञ में महादेवजी का भाग न देखकर और अपने पिता के मुख से रुद्र की निन्दा सुनकर, उन सबकी निंदा करते हुए, उन्होंने वहीं (यज्ञ -कुण्ड) में गिरकर अपना शरीर त्याग दिया । 

यह समाचार सुनकर महादेवजी ने परम कुपित होकर अपनी जटा का एक बाल उखाड़ कर वीरभद्र नामक अपने गण को उत्पन्न कर, उसे आज्ञा दी कि तुम जाकर दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दो। 

यह आज्ञा पाते ही वीरभद्र ने तुरन्त वहाँ जाकर यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष को पुनः जीवित कर दिया और सबका सत्कार कराकर यज्ञ सम्पूर्ण करवाया । 

उस समय जो सती की देह उत्पन्न ज्वाला पर्वत पर गिरी थी, वही पर्वत 'ज्वालामुखी' नाम से प्रसिद्ध होकर आज तक पृथ्वी पर पूजित है । 

आज भी जिसके दर्शन से लोगों की सब कामनायें सिद्ध होती हैं ।

 तदुपरान्त वही सती दूसरे जन्म में हिमाचल के घर पुत्री रूप में प्रकट हुई, और 'पार्वती' नाम से प्रसिद्ध होकर उसने बड़ा कठिन तप करके पुनः श्रीमहादेवजी को पति रूप में प्राप्त किया ।

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