ram katha in hindi written राम कथा इन हिंदी

ram katha in hindi written राम कथा इन हिंदी

ram katha in hindi written राम कथा इन हिंदी

  महर्षि बाल्मीकि ने दोनों बालकों को 24000 श्लोक कंठस्थ कराएं और कहा कि पहली कथा रामायण की संतो के मध्य होनी चाहिए। 

 यह हमारी आर्ष परंपरा है कि पहली कथा संतो के बीच में निवेदन करें। 

इसीलिए अयोध्या वृंदावन आदि में जो लोग कथा की तैयारी करते हैं वह लोग सबसे पहले संतो को सुनाते हैं और संत जिस कथा को प्रमाणित करें वही कथा कथा होती है। 

पहले संतो के बीच में सुनाओ और महाराज महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में वह आयोजन सुंदर हुआ दोनों बालक वक्ता बनकर बैठे हैं और खूब संतों का समूह बैठा है और जब यह दोनों बालक रामायण काव्य का वाचन करने लगे तो महाराज एक संत कहते हैं-

अहो गीतस्य माधुर्यम्। 

 जयति जयति, जय हो क्या वाणी में माधुर्य है । एक संत कहते हैं-

क्षिनिवृत्त मत्तेतत् प्रत्यक्ष मेव दर्शितम्। 

 देखो देखो इस घटना के बीते कितने वर्ष बीत गए लेकिन जब यह दो नन्हे नन्हे बालक इसका वर्णन करते हैं तो लगता है कि हम इस सारे दृश्य को अपने आंखों से देख रहे हैं ।  वक्ता का लक्षण है जो बीते हुए घटनाओं को आपके सामने प्रकट कर दे, चित्रित कर दे यह श्रेष्ठ वक्ता का लक्षण है। 

कुश लव जी ऐसा वर्णन कर रहे हैं महाराज और कथा पूरी हुई। अच्छा जिससे कथा सुनी जाती है उसे कुछ दिया भी जाता है ऐसा भी नियम है। 

संतो के पास क्या है जो दें महाराज?

लेकिन अद्भुत दान है एक संत खड़े हुए हैं कहा-  महर्षि बाल्मीकि के शिष्यों इतनी सुन्दर तुमने कथा सुनाई । एक संत ने अपना उत्तरीय दे दिया। 

 एक संत ने अपना कमंडलु दे दिया। एक ने मुंज प्रदान किया। एक ने मेखला प्रदान किया और एक संत ने तो लौटा दे दिया ।  एक ने बाल्टी प्रदान की । एक ने रस्सी भी चढ़ाई है ऐसा यहां पर लिखा है। 

 और एक संत ऐसे थे जिनके शरीर पर एक लंगोटी थी और यहां पर लिखा है-

कौपीनं वपरो मुनिः। 

 वह सोचते हैं सब दे रहे हैं तो हम भी कुछ दें लेकिन कुछ है ही नहीं तो उन्होंने धीरे से लंगोटी उतार कर रख दिया । 

बोलिए संत भगवान की जय। 

 और ऐसे संत भी कथा सुन रहे थे जिनके तन में लंगोटी भी नहीं थी। ऐसे भी संत थे जिनके शरीर में कोई वसन नहीं है लेकिन रामचरित्र सुनने का व्यसन है। 

 व्यसन हो लेकिन हमारे शास्त्र कहते हैं सिर्फ दो चीजों का व्यसन हो। या विद्या का व्यसन हो या सेवा का व्यसन हो ।  यह दो व्यसन जीवन में आ गए तो जीवन धन्य हो जाएगा। 

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 हमारे यहां संतों को भी व्यसन होता है ।  जो प्रेमी है सूचना मिल जाए कि महाराज कथा हो रही है तो झट पहुंच जाते हैं ।  अच्छा व्यसनी लोग अपना काम बनाने में कुशल होते हैं ।  तंबाकू खाते हैं जो लोग देखिए कितने तरीके से कहीं-कहीं सत्संग में भी अपना काम चला लेते हैं। 

 कीर्तन हो रहा हो। वह अपना रगड़ रहे हैं । सीताराम सीताराम जय सीताराम ।  और वक्ता बोल रहे हैं कि अरे थोड़ी ताली बजाकर। तो सीताराम जय सीताराम। हांथ उठाकर तो मुंह में तबाकू डालकर हाथ उठा लिए। हर हर महादेव। 

 तीनों काम कर लिए धीरे से क्यों क्योंकि व्यसन है।  वह ब्यसन के बिना रह नहीं सकते हैं। तो संतो को एक व्यसन होता है।  और वह व्यसन होता है रामचरित्र सुनने का सूचना भर मिल जाए। 

धावन्तो प्यायैव सर्वे।  

अकेले नहीं जाते हैं। 

सः पुत्र शिष्याः। 

 यदि बेटा हो तो बेटा को लेकर, पत्नी हो तो पत्नी को लेकर, शिष्य हो तो शिष्य को लेकर दौड़ते हैं । ऐसे संत आए हैं जिनको रामचरित्र सुनने का व्यसन है लेकिन शरीर पर वसन नहीं है। महर्षि बाल्मीकि नहीं गोस्वामी जी भी ऐसे संतों का वर्णन कर रहे हैं-

आशा बसन व्यसन यह तिनहीं। 

रघुपति चरित होहिं तहां सुनहीं।। 

 शरीर पर एक भी वसन नहीं है लेकिन कथा का व्यसन है रघुपति चरित्र सुनने का व्यसन है । 

 जब सारे लोग हट गए तो जो निर्वसन हैं वह महात्मा सामने खड़े हो गए विचार करने लगे हम इनको क्या दें। तो कुष लव जी ने जब इनकी और देखा तो महात्माओं ने कहा- हे राम कथा के अनुपम गायकों तुम्हें देने के लिए तो हमारे पास कुछ नहीं है। 

 लेकिन जी कर रहा है हम भी कुछ दें तो सुनो हम सारे महात्मा तुम्हें आशीर्वाद देते हैं। 

 क्या आशीर्वाद देते हैं दुनिया के कथा वक्ताओं की कथा बैठकर संत और भक्त सुनते हैं । जाओ एक दिन तुम्हारी कथा को स्वयं भगवान बैठकर के सुनेंगे हम ऐसा आशीर्वाद देते हैं। 

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 ऐसा आशीर्वाद दिया ।  वरदान से आशीर्वाद श्रेष्ठ है। वरदान तो कोई भी दे देता है वरदान तो बड़े-बड़े राक्षसों को भी मिला है लेकिन जिसने वरदान पाया उसका पतन हुआ चाहे वह रावण ने पाया हो चाहे हिरण्यकशिपु ने पाया हो। 

 वरदान पाने वालों का पतन हुआ लेकिन आशीर्वाद पाने वालों का हमेशा उत्थान ही हुआ है। 

 यह आशीर्वाद की वैशिष्ट है और संतों ने आशीर्वाद दिया उन दोनों नन्हें बालकों ने अपनी वीणा संभाली एक तंत्री उठाई है । 

महर्षि बाल्मीकि ने कहा जाओ कहां कथा सुनानी है? कहा पूरी दुनिया में सुनानी है लेकिन सबसे पहले अयोध्या जाओ। 

 यदि वहां के सम्राट श्री राम सुनना चाहें उन्हें जरूर सुनाना बहुत नियम से रहना ,संयम से रहना कोई मिठाई मत खाना बालक है ऐसा भी समझाया है कि गला खराब ना हो जाए। 

 संयमित रहना और कथा सुनाने के बदले में यदि कुछ दे तो उसको मत लेना यह भी सिखाया है और विदा कर रहे हैं मां जानकी ने भी आज मस्तक पर तिलक लगाकर विदा किया। 

 कहां जा रहे हैं तो कहां अयोध्या ।   सीता चरित्र सुनाने अयोध्या वासियों को क्यों? कहा जिन अयोध्या वासियों ने उनकी मां के जीवन पर जो कलंक आरोपित किया है उन्हें जरूर सुनना चाहिए कि श्री जानकी जी का चरित्र क्या है। 

 और अपने मां के चरित्र को प्रमाणित करने का भार यह दो नन्हे बेटों ने उठाया है। 

 आज मां जानकी ने इनके मस्तक पर तिलक किया है और दोनों बालकों को अपने कलेजे के टुकड़े को विदा किया है। 

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