सदाशिव के बारह ज्योतिलिंग एवं उपलिंगों का वर्णन

सदाशिव के बारह ज्योतिलिंग एवं उपलिंगों का वर्णन

सदाशिव के बारह ज्योतिलिंग एवं उपलिंगों का वर्णन


मुनियों ने सूतजी से कहा- कि प्रभु ! आपने लोक हित के लिये भगवान शङ्कर की परम पवित्र अनेकों कथाएं सुनाई हैं । भगवान शङ्करजी की कथारूपी अमृत का पान करते-करते कौन पुरुष तृप्त हो सकता है ? 

अतः आप जगत के मङ्गल के लिये पृथी भर के तीर्थ स्थानों से परम श्रेष्ठ सदाशिव के लिङ्ग एवम् और भी प्रसिद्ध-प्रसिद्ध शिव लिङ्गों की कथाएँ वर्णन कीजिए । 

यह सुन शिवभक्त सूतजी बोले- ऋषियो ! आपने संसार के हित की कामना से बड़ा सुन्दर प्रश्न किया है । आपका शिवकथा में महान प्रेम है और मैं आपको यथामति शिव कृपा से कुछ न कुछ सुनाता हूँ । भगवान शङ्कर के लिङ्गों की गणना भला कौन कर सकता है ।

 वे तो पृथ्वी पर क्या असंख्य ब्रह्माण्डों में फैले हुए हैं । 

अतः मैं मुख्य-मुख्य शिव लिङ्गों की कथाएँ सुनाता हूँ आप लोग सुनिए ? सौराष्ट्र देश में सोमनाथ जी, श्री शैल में मल्लिकार्जुन, उज्जैन में महाकालेश्वर, ओंकारजी में परमेश्वर, हिमाचल के शिखर पर केदारजी, डाकिनी देश में भीम-शङ्कर, काशी में विश्वनाथजी, गोमती नदी के तट पर श्रीत्र्यम्बकेश्वरजी, सेतुबन्धु- में रामेश्वरजी एवम् शिवालय में घुस्मेश्वर जी ये बारह ज्योतिलिंग कहे जाते हैं । 

जो भी प्राणी प्रातःकाल उठकर उन बारहों का स्मरण पूजन आराधनादि करते हैं उनके पाप-ताप सभी नष्ट हो जाते हैं। वे अनेक मनोरथों को प्राप्त करके परम पद को पाते हैं । 

इन ज्योतिलिंगों पर चढ़ाया हुआ नैवेद्य प्रसाद खाने में कोई दोष नहीं । उनके प्रसाद ग्रहण से तो सभी प्रकार के पाप भस्म हो जाते हैं । 

जो भी मनुष्य इन लिंगों में से किसी का भी निरन्तर पूजन किया करता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता । बधिक, कसाई, शुद्र, नीच जाति पतित से भी पतित कोई भी हो ज्योतिलिङ्गों में से किसी भी लिङ्ग का दर्शन कर ले तो उसका ब्राह्मण के घर में जन्म होता है । 

फिर वह शुभ कर्म करके मोक्ष पाता है । ऋषियो ? इन ज्योतिलिङ्गों की महिमा ब्रह्मा विष्णु आदि देवता भी नहीं वर्णन कर सकते । 

अब उनसे उत्पन्न हुये शिवलिङ्गों की कथा सुनिये। 

समुद्र एवं पृथ्वी के मिलाप वाले स्थान पर श्री सोमेश्वरजी का जप लिङ्ग अन्नकेश नामक लिङ्ग है मल्लिकार्जुन से प्रकट हुआ उपलिङ्ग रुद्रेश्वर नाम से प्रसिद्ध है वह भृगकेक्ष देश में सम्पूर्ण प्राणियों को सुख देने वाला है । 

नर्मदा नदी के तट पर महाकाल नामक शिवलिङ्ग से प्रकट हुआ दुग्धेश नामक उपलिङ्ग है और जो ओंकार से प्रकट हुआ कर्दमेश्वर नाम का उपलिङ्ग है वह बिन्दु सरोवर में सब प्रकार के मनोरथ पूर्ण करने वाला प्रसिद्ध है ।

 केदारेश्वर से प्रकट हुआ भूतेश्वर नामक उपलिङ्ग है वह यमुना के तट पर विद्यमान है भीमशङ्कर से प्रकट हुआ उपलिङ्ग जो बल बुद्धि को बढ़ाता है उसका नाम भीमेश्वर है । 

वह पर्वत पर प्रसिद्ध है । नागेश्वर शङ्कर का उपलिङ्ग पापनाशक भूतेश्वर नाम से प्रसिद्ध है । मल्लिका सरस्वती नदी के तट पर विख्यात है । श्रीरामेश्वरजी का उपलिङ्ग गुप्तेश्वर नामक है । घुमेश्वर नाम का उपलिङ्ग व्याघेश्वर नाम से है । 

ये सब लिंग और उपलिंग पापों को भस्म करके भक्तों को अनेकों फल प्रदान करते हैं इनका पूजन एवं दर्शन करने से सब प्रकार के मनोरथ सिद्ध होते हैं । (पूर्व दिशा के शिवलिंग) सूतजी बोले- ऋषियो ! पतितपावनी भगीरथी गंगाजी के तट पर मुक्तिदात्री काशीपुरी है । 

वहाँ भगवान शङ्कर का निवास है । 

इसी पुरी में कृतिका बासेश्वर नामक शिवलिंग है जो कि बालक वृद्ध सभी को अपने समान बनाकर मुक्ति देने वाला है इसी तरह और तिल भाँडेश्वर दशाश्वमेध आदि लिंग हैं । 

कौशिकी नदी के किनारे अन्य दो लिंग हैं जिनके नाम भूतेश्वर और नारीश्वर प्रसिद्ध हैं । गाँडवी नदी के तट पर बटुकेश्वर लिंग है और फाल्गुन नदी तट पर पूरेश्वर लिंग है । 

उत्तर प्रदेश में केवल दर्शन मात्र से ही मनुष्यों के सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला सिद्धनाथेश्वर एवं दूतेश्वर दो लिंग विद्यमान हैं । ऋषि दधीचि के युद्धस्थल पर शृंगेश्वर वैद्यनाथ तथा जपेश्वर लिंग हैं । 

इसी तरह गोपेश्वर, रंगेश्वर, रामेश्वर, नागेश, कामेश, वितलेश्वर, व्यासेश्वर, सुकेश, भाँडेश्वर, हँकारेश, सुरोचन, भूतेश्वर, संगमेश आदि नाम वाले लिंग सभी तरह के पापनाशक हैं । 

तृप्तका नदी के तट के पर कुमारेश्वर, सिद्धेश्वर, सैनेश, रामेश्वर, कुम्भेश, नन्दीश्वर, पुंजेश नामक शिवलिंग हैं । प्रयाग में दशाश्वमेध नामक तीर्थ पर धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि के देने वाले ब्रह्मेश्वर नामक तीर्थ पर धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि के देने वाले ब्रह्मेश्वर नामक शिवलिंग हैं इसको ब्रह्माजी ने स्थापित किया था । 

इसी स्थान पर सम्पूर्ण दुख विनाशक सोमेश्वर, ब्रह्मतेजवर्द्धक भारद्वाजेश्वर संसार के सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाले शूलटंकेश्वर एवं भक्तों की रक्षा करने वाले माधवेश्वर लिंग हैं । 

अयोध्या में रघुवंशी राजाओं को सुख देने वाले नागेश लिंग है । 

पुरुषोत्तमपुरी में शुभ सिद्धदाता भुवनेश एवं सभी आनन्द के देने वाले लोकेशमहा शिवलिंग हैं । लोकहित के लिये स्थापित कामेश्वर, परम शुद्धिकर्ता गणेश शुक्रेश्वर एवं शुक्रसिद्धि आदि लिंग हैं । 

मनुष्य मात्र के सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाले एवं सभी पापों के नाशक बटेश्वर, कृपालेश एवं वक्रेश शिवलिंग हैं ये सभी सिन्धु नदी के किनारे पर स्थित हैं । धूत पापेश्वर, भीमेश्वर, सूर्येश्वर यह लिंग अंश से परमेश्वर हैं । 

नन्दीश्वरजी तो संसार भर में ज्ञान देने वाले सर्व पूज्य प्रसिद्ध माने जाते हैं एवं महापुराण रूप नागेश्वर शिवलिंग हैं । इसी प्रकार रामेश्वर विमलेश्वर कंटकेवर तथा समुद्र के किनारे धनुर्केश आदि लिंग महा प्रसिद्ध हैं । 

चन्द्रेश्वर लिंग चन्द्रमा के समान कान्ति देने वाले हैं। सभीकामनाओं को पूर्ण करनेवाले विद्वेश्वर लिंगहै । विश्व में मशहूर विश्वेश्वर लिंग हैं । 

इसी कारण आपका नाम शरणेश्वर प्रसिद्ध है। 

अर्बुदाचल पर्वत पर कर्मदेश लिंग है एवं कीटीश तथा अचलेश नाम से ये लिंग लोक सुखकारक है । कौशिका नदी के तट पर नागेश्वर एवं कल्याण पात्र अनन्तेश्वर महा शिवलिंग है । 

योगेश्वर वैद्यनाथेश्वर कोटिस्वर सत्येस्वर भद्रनामक सदा शिव हर चंगीस्वर संगमेश्वर नाम वाले लिंगपूर्व दिशा में विद्यमान हैं ।

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