नारद जी द्वारा देवी की महिमा बताना devi mahima in hindi
नारद जी द्वारा व्यासजी को देवी की महिमा बताना
प्राचीन काल में एक समय सत्यवती के पुत्र व्यास जी सरस्वती नदी के किनारे अपने आश्रम में गौरेया पक्षी का जोड़ा देखकर आश्चर्य में पड़ गये कि उनका एक सुन्दर बच्चा था।
जिसके घोंसले में ही छोड़कर वे दोनों उड़ गये और अत्यंत परिश्रम से चारा लाकर उस शिशु के चोंच में डालते हुए दोनों पक्षी अत्यंत आल्हादयुक होकर उस शिशु के अंगों को अपने अंगों से रगड़ते हुए प्रेमपूर्वक उसके सुन्दर मुख को चूम रहे थे।
व्यास जी उस शिशु में उन दोनों पक्षियों का ऐसा अद्भुत प्रेम देखकर चिंता में पड़ गये मन ही मन सोचने लगे, यदि अपने पुत्र के प्रति पक्षियों में ऐसा प्रेम दिखाई दे रहा है तो आपकी सेवा का फलचाहने वाले मनुष्यों में ऐसी प्रेम व्यवहार होने में आश्चर्य ही क्या ? पुत्र के शरीर का आलिंगन और विशेष रूप से उसका लालन-पालन इस संसार में सभी सुखों में उत्तम सुख कहा गया है।
पुत्र रहित मनुष्य की न तो सद्गति होती है और न तो उसे स्वर्ग की ही प्राप्ति होती है। अत: परलोक साधन के लिए पुत्र से बढ़कर अन्य कोई उपाय नहीं है ।
नारद जी द्वारा देवी की महिमा बताना devi mahima in hindi
रोगावस्था में तथा मरण काल में भूमि शैय्या पर पड़ा हुआ है प्राणी दुखित होकर अपने मन में विचार करता है कि मेरे घर में पर्याप्त धन है, अनेक प्रकार के पात्र हैं तथा मेरा यह भवन भी अति सुन्दर है किन्तु अब इन सबका स्वामी कौन होगा ? चूँकि मृत्युकाल में उस प्राणी का मन अति दुखी होकर भ्रमित होता रहता है, इसलिए उस भ्रान्त मन वाले प्राणी की दुर्गति अवश्य ही होती है।
इस प्रकार अनेकानेक चिंतन करके और बार-बार लम्बी तथा गर्म साँसें लेकर सत्यवती पुत्र व्यासजी का मन अत्यंत खिन्न हो गया और बहुत सोच-विचार करके अत्यंत दृढ़ निश्चय करके ने तपश्चर्या के लिए मेरू पर्वत पर चले गये।
इस प्रकार अनेकानेक चिंतन करके और बार-बार लम्बी तथा गर्म साँसें लेकर सत्यवती पुत्र व्यासजी का मन अत्यंत खिन्न हो गया और बहुत सोच-विचार करके अत्यंत दृढ़ निश्चय करके ने तपश्चर्या के लिए मेरू पर्वत पर चले गये।
उन्होने मन में विचार किया कि मैं विष्णु, रुद्र, इन्द्र, ब्रह्मा, सूर्य, गणेश, कार्तिकेय, अग्नि एवं वरुण इन देवताओं में किस देवता की आराधना करूँ जो वर प्रदान करने में उदार तथा अभीष्ट फलों को देने वाला हो ।
व्यास जी बोले-सन्तानहीन व्यक्ति की सद्गति नहीं होती और कभी भी उसके मन में सुख की अनुभूति नहीं होती है, इस बात को लेकर मैं अत्यंत दुखित हूँ और बार-बार यही सोचता रहता हूँ। अभिलाषित फल देने वाले किस देवता को अपनी तप साधना से प्रसन्न करूँ इसी चिंता में पड़ा हुआ इसके समाधान हेतु आपकी शरण में हूँ।
व्यास जी के द्वारा इस प्रकार पूछे जाने पर वेद-वेत्ता तथा महामना महर्षि नारद अत्यंत प्रेम पूर्वक व्यासजी से कहने लगे- हे पाराशर तनय ! हे महाभाग ! आप कल्याणकारी पुत्र प्राप्ति के लिये सर्वथा संशयरहित होकर अपने हृदय कमलों में देवी भगवती के चरणार विन्द का ध्यान कीजिये।
नारद जी द्वारा देवी की महिमा बताना devi mahima in hindi
इस प्रकार व्यास जी विचार कर ही रहे थे कि उसी समय संयोग वश मुनि श्रेष्ठ नारद जी हाथ में वीणा किये हुए वहाँ आ गये। उन्हें देखकर व्यास जी अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें अर्घ्य आसन प्रदाप करके उन मुनि से कुशल क्षेम पूछा। कुशल प्रश्न सुन लेने के बाद नारद जी पूछा- हे द्वैपायन ! आप किस कारण से चिंताग्रस्त हैं? मुझे बताऐं।व्यास जी बोले-सन्तानहीन व्यक्ति की सद्गति नहीं होती और कभी भी उसके मन में सुख की अनुभूति नहीं होती है, इस बात को लेकर मैं अत्यंत दुखित हूँ और बार-बार यही सोचता रहता हूँ। अभिलाषित फल देने वाले किस देवता को अपनी तप साधना से प्रसन्न करूँ इसी चिंता में पड़ा हुआ इसके समाधान हेतु आपकी शरण में हूँ।
व्यास जी के द्वारा इस प्रकार पूछे जाने पर वेद-वेत्ता तथा महामना महर्षि नारद अत्यंत प्रेम पूर्वक व्यासजी से कहने लगे- हे पाराशर तनय ! हे महाभाग ! आप कल्याणकारी पुत्र प्राप्ति के लिये सर्वथा संशयरहित होकर अपने हृदय कमलों में देवी भगवती के चरणार विन्द का ध्यान कीजिये।
वे देवी आपके समस्त अभिलाषित फलों को अवश्य प्रदान करेंगी। नारद के ऐसा कहने पर व्याजी देवी के चरणार बिन्दों में ध्यान केन्द्रित करते हुए तपश्चर्या हेतु पर्वत पर चले गये।