Dhruva ki Kahani भक्त ध्रुव जी की कथा 2

Dhruva ki Kahani भक्त ध्रुव जी की कथा 2

Dhruva ki Kahani भक्त ध्रुव जी की कथा 1


भगवान् अपना शंख उनके गाल से स्पर्श कराते हैं तो ध्रुव का कंठ खुल जाता है। वे स्तुति करने-

योऽन्तः प्रविश्य मम वाचमिमां प्रसुप्तां संजीवयत्यखिलभक्तिघरः स्वधाम्ना ।

अन्यांश्च हस्तचरणश्रवणत्वगादीन् प्राणान्नमो भगवते पुरुषाय तुभ्यम् ।।

श्रीमद्भा0 4.9.6

हे प्रभो! आप अनन्त शक्ति से सम्पन्न हैं तथा मेरे अन्तःकरण में प्रवेश कर आपने अपने तेज से मेरी सोई हुई इस वाणी को सजीव किया। हाथ-पैर कान त्वचा आदि सभी इन्द्रियों सहित प्राण को आप चैतन्य प्रदान करते हैं। हे अन्तर्यामी प्रभो आपको मैं प्रणाम करता हूँ।

भगवान् ने प्रसन्न होकर पूछा कि तुम्हारी क्या इच्छा है ? ध्रुव ने कहा कि मैं आपके धाम जाना चाहता हूँ। भगवान् कहा कि तुमने पिता की गोद में बैठने लगते हैं। - के लिए तपस्या की थी। इसलिए अभी घर जाओ। पिता के आदेश से तुम 36000 वर्षों तक राज करोगे, यज्ञ करोगे। फिर मैं अपने धाम बुला लूँगा ।

वह ध्रुवजी भगवान् के आदेशानुसार अपने नगर की ओर लौटे। 

इधर उत्तानपाद अपने पुत्र ध्रुव का आगमन सुनकर उनकी आगवानी के लिए कुलवृद्ध ब्राह्मणों एवं हाथियों को सजाकर आगे बढ़ते हैं। ब्राह्मण मंत्रोच्चार कर रहे हैं एवम् वह राजा उत्तानपाद अपने दोनों पत्नियाँ सुनीति एवं सरुचि के साथ प्रसन्नता से आगे बढ रहे है। इधर सभे नगरवासी लोग प्रसन्न हैं। 

ध्रुव जब अपने बगीचे के पास आये, तो उत्तानपाद ने ध्रुव को सत्कार के साथ राजभवन में लेकर आए और उन ध्रुव को हस्तीनापुर का राजपाट देकर स्वयं वन को प्रस्थान कर गये। 

वे विरक्त होकर भगवान् की खोज में निकल पड़े और उन्होंने श्रीप्रभु को प्राप्त किया। इसप्रकार वह राजा उत्तानपाद श्री भगवत् कृपा को प्राप्त किये।

इधर इसके बाद ध्रुव ने शिशुमार नामक प्रजापति की पुत्री भ्रमि से विवाह किया तो उनके दो पुत्र हुए- कल्प और वत्सर । ध्रुव की दूसरी पत्नी इला जो वायु की पुत्री थीं उस इला से श्री ध्रुव को एक पुत्र हुआ जिसका नाम उत्कल था।

 उसी उत्कल के नाम पर उत्कल प्रदेश बना है। इधर ध्रुव के भाई उत्तम का विवाह नहीं हुआ था । एक दिन उत्तम जंगल में शिकार खेलने गये थे। वहाँ उन्हें यक्षों ने मार दिया। सुरुचि भी पुत्र शोक में मर गयी।

 यक्षों की राजधानी अलकापुरी थी, जिसके राजा कुबेर थे। ध्रुव ने अलकापुरी पर चढ़ाई कर दी। उनकी शंख - ध्वनि से यक्ष दहल गये तथा उनकी स्त्रियाँ घबरा गईं।

 ध्रुव ने एक लाख तीस हजार यक्षों के उपर बाण मारे ,ध्रुव को यक्षों का नाश करते देख पितामाह मनु ने आकर उन्हें समझाया और कहा कि तुमने बहुत से यक्षों को मार दिया है, अब मत मारो। 

यह क्रोध पाप का कारण हो सकता है। 

वह यक्षों के मारने से तुम्हारे भाई की मृत्यु नही हुई है बल्कि तुम्हारा भाई अपने मृत्यु से मरा ,पशुओं के समान प्राणियों की हिंसा करना ठीक नहीं। तुम भगवान् के कृपापात्र तथा भक्तों में आदरणीय हो अतः हे ध्रुव ! वे श्रीमन् नारायण भगवान्-

तितिक्षया करुणया मैत्र्या चाखिलजन्तुषु ।

समत्वेन च सर्वात्मा भगवान् संप्रसीदति।' -

4.11.13 –

वह प्रभु तितिक्षा, दया, मैत्री एवं प्राणियों में सम दृष्टि रखने से ही प्रसन्न होते हैं । प्राणियों के संहार करने से भगवान् प्रसन्न नहीं होते। सहनशीलता, अपने से कमजोर पर दया, आदमी के गुण हैं।

इस तरह मनु का उपदेश सुनकर ध्रुव युद्ध से विरत होकर उन्हें प्रणाम करते हैं। इसके बाद ध्रुव का पराक्रम सुनकर कुबेर ध्रुव के पास आये । ध्रुव ने उन्हें प्रणम किया। 

कुबेर ने कहा कि तुने अपने पितामाह की आज्ञा मानकर युद्ध बन्द कर दिया, बहुत अच्छा किया, न तो तुम्हारे भाई को यक्ष ने मारा है और न ही तुमने यक्षों को मारा है। ये तो अपने काल के कारण मारे गये हैं। मैं तुम्हें वर देना चाहता हूँ। तुम्हारी जो इच्छा हो वह माँगो । ध्रुव ने भगवान् के चरणों में अचलााभक्ति माँगी। कुबेर तथास्तु कहकर चले गये ।

इसके बाद ध्रुव ने अपने राज म आकर अनेक यज्ञ किये तथा वे ध्रुव ने अपने राज्य का उत्तराधिकारी अपने पुत्र वत्सर को बनाये और वे राजपाट का त्याग कर दिया तथा बद्रीनाथ में जाकर वे तप करते हुये समाधि में चले गये। कुछ समय बाद एक दिव्य विमान आया, जिसमें भगवान् के पार्षद नंद, सुनंद इत्यादि आये । 

ध्रुव ने पूछा कि मेरे लिये क्या आज्ञा है? पार्षदों ने कहा कि आपका कार्य पूरा हो गया ।

 आप भगवान् के भक्त हैं, उनके धाम चलें।

 ध्रुव जी उस विमान में बैठकर ज्योहीं चले की उसी समय मृत्युदेव के मालीक यमराज आ गये और यमराज ने कहा कि- हमारा आतिथ्य भी सवकार करें। ध्रुव जी ने भगवान् का ध्यान किया और फिर महात्मा ध्रुव जी मृत्यु के सिर पर पैर रखकर भगवान के विमान पर गये ।

तटोत्तानपदः पुत्रो ददर्शान्तकमागतम् ।

मृत्योर्मूर्ध्नि पदं दत्त्वा अरुरोहाद्भुतं गृहम् ।।

श्रीमदभा0 4.12.30

इधर देवता लोग दुदुंभी बजाने लगे। ध्रुव जी ने माता सुनीति को याद किया। पार्षदों ने माता सुनीति के दर्शन कराये जो आगे-आगे दूसरे विमान से जा रही थीं । ध्रुवजी ध्रुव लोक में पहुँचे तो वह ध्रुवलोक को भगवान् ने उन्हें दे दिया।

सोकुल धन्य उमा सुनु जगत पूज्य सुपुनीत । श्री रघुवीर परायण जेहि नर  उपज विनीत ।।

इस तरह जो जी की ध्रुव कथा सुनता है, सुनाता है, उसकी सारी कामनायें पूर्ण हो जाती हैं, जैसे ध्रुवजी की सारी कामनायें पूर्ण हुई थीं।\

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