सातों द्वीपों का वर्णन saat deepo ka varnan
जम्बूद्वीप- यह भारतवर्ष है, हिमालय के दक्षिण की ओर समुद्र से उत्तर की तरफ नौ हजार योजन के प्रमाण का है । इसे कर्म भूमि कहते हैं यहाँ बुरे भले अपने कर्मों के अनुसार मनुष्य नरक किंवा स्वर्ग फल पाता है । उस भारतवर्ष के नौखण्ड हैं। इन्द्रद्युम्न, कसेरू, ताम्रवर्ण, गभस्तिमान नाग, द्वीप, सोम्य, गन्धर्व वारुण यह आठ खंड हैं । इनके अतिरिक्त सागर से निकले हुए हजारों योजन तक दक्षिण से उत्तर की तरफ विस्तार वाला नवम भारत खण्ड है ।
इसी के पूर्व की तरफ कितार दक्षिण में यवन एवं उत्तर ऋषिमुनियों का निवास हैं ।
इसके मध्य में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र वर्ण के लोग रहते हैं । जो युद्ध में कुशल व्यापार सेवा आदि में चतुर हैं । यही मलय महेन्द्र सह्य सुदामा ऋक्ष विन्ध्याचल पारियात्र नाम के सात पर्वत हैं । इनमें से पारियात्र में ये वेद स्मृति पुराणादि सदग्रन्थ प्रकट हुये ।
जिनसे सभी पापों का नाश होता है । विन्ध्याचल से सुगन्धा नर्मदा आदि सात नदियाँ निकलकर सभी पापों का नाश करती हैं । इनके अतिरिक्त और भी बड़ी-बड़ी नदियाँ प्रवाहित होती रहती ऋक्ष पर्वत से सर्व पापों की नाशक गोदावरी भीमरथी ताप्ती आदि नदियाँ बहती हैं ।
सह्य पर्वत से कृष्णा बेणी आदि नदियाँ एवं मलयाचल से कृत माला ताम्रपर्णी आदि महेन्द्र पर्वत से त्रिमाला, ऋषिकुल्या कुमारी आदि नदियाँ चलती हैं । इनके तटों पर बहुत से नगर ग्राम हैं वहाँ के निवासी इन नदियों तथा अन्य तालाबों का जल पिया करते हैं।
प्लक्षद्वीप- यह द्वीप क्षार समुद्र से घिरा हुआ सौ हजार योजन के विस्तार में है । इस द्वीप में गोमन्त, चन्द्र नारद दर्दुर सोनक सुमन बैभ्राज नामक पर्वत है । अनुतप्त शिखी पापघ्नी त्रिदिवा कृपा अमृता सुकृभा नामक सात नदियाँ हैं । उनके अतिरिक्त और भी अनेकों नदियाँ हैं ।
यहाँ के मनोहर पर्वतों के मध्य में चारों ओर देवता गन्धर्व एवं अन्य भी ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्यादि जातियाँ निवास करती हैं । यह देश सदा त्रेतायुग के समान प्रभाव रखता है । यहाँ की प्रजा उपरोक्त नदियों का जल पीती है। इसी द्वीप में सब लोगों के हित के लिये सदा शिव का ब्रह्मा विष्णु आदि देवता वेदमन्त्र द्वारा पूजन किया करते हैं ।
शास्मलीद्वीप- यह द्वीप प्लक्ष से दुगुना माना गया है । इसे मदिरा का सागर लपेटे हुए है । इसके मध्य में सेमल का बड़ा-सा वृक्ष है ।
इसी कारण इसका नाम शाल्मली है ।
यहाँ श्वेत हरित । जीमूत रोहित बैकल मानस सुप्रभु नामक सात वृक्ष हैं और शुक्ला रक्ता हिरण्या चन्द्रा शुभ्रा विमोचना निवृता नामक शीतल जल वाली नदियाँ बहती हैं । कुशद्वीप मदिरा सागर से बाहर इससे दुगुना घृत समुद्र से घिरा हुआ कश समूह से संयुक्त यह द्वीप है ।
यहाँ कुशेशय, हरि द्युतिमान पुष्पमान मणि द्रुग हैमशैल एवं मदराचल ये सात पर्वत हैं तथा युतिमान शिवा पवित्रा समिति विद्या दम्भा मही महानदी आदि इनके अतिरिक्त सोने के समान वालु वाली निर्मल जला अन्य भी हजारों नदियाँ हैं । मानव दानव दैत्य देवता गन्धर्व यक्ष किं पुरुष आदि अपने-अपने काम में लगे हुये ब्रह्मा विष्णु एवं शिवजी का पूजन किया करते हैं ।
क्रोंच द्वीप- घृतोद समुद्र से बाहर इससे भी दुगुना विस्तार युक्त दधि समुद्र से घिरा हुआ ही वह द्वीप है । यहाँ पर क्रोंच वामन अन्श कारक दिवावृत्ति, मन पुण्डरीक दन्दुभि नामक पर्वत है । गौरी कुमुद्धती सन्ध्या रात्रि मनोजवा शान्ति पुण्डरीक नामक सात महानदियाँ तथा और भी स्वच्छजला हजारों नदियाँ बहा करती हैं।
शाकद्वीप- दधि समुद्र से बाहर इससे द्विगुण विस्तार वाले दुग्ध सागर से घिरा हुआ शाक द्वीप है । यहाँ शाक का बड़ा वृक्ष उदयाचल अस्ताचल जलधार अविवेक केशरी आदि पर्वत हैं ।
सुकुमारी कुमारी नलिनी वेणु का इक्षु रेणुका गभस्ति नामक महानदियाँ तथा अन्य भी छोटी बड़ी हजारों नदियाँ हैं तथा छोटे बड़े और भी अनेकों पर्वत हैं ।
यहाँ के रमणीक स्थलों में चारों वर्ण रहते हैं स्वर्गवासी लोग भी यहाँ आकर भ्रमण करते रहते हैं।
पुष्कर द्वीप- क्षीर समुद्र से बाहर इससे दुगने प्रमाण के मधुर जल वाले सागर से यह घिरा रहता है । इसका मध्यप्रदेश पाँच हजार योजन की ऊँचाई एवं पाँच लाख योजन की गोलाई का विस्तार रखता है ।
यहाँ मानस नामक पर्वत है ।
यहाँ जरा (बुढ़ापा) रोग शोक राग द्वेष अधर्म मृत्यु बन्धन आदि कुछ भी नहीं व्यापते, यहाँ के निवासी सत्यवक्ता दस हजार वर्ष की आयु वाले सोने के समान दमकते हुए सुख आनन्द से रहते हैं और इसी द्वीप के महावीत घातक नामक खण्ड में प्रजापति ब्रह्मा रहते हैं । देव दानव आदि सदा इनको पूजते रहते हैं । इ
सी द्वीप के रहने वालों को समयानुसार स्वयं ही भोजन मिल जाया करता है। इसके लिये इन्हें परिश्रम नहीं करना पड़ता । इससे आगे मनुष्यों के रहने योग्य कोई लोक नहीं जहाँ कोई भी प्राणी नहीं जा सकता । इस प्रकार की सोने की पृथ्वी है ।