Kardam Devhuti कर्दम ऋषि की कथा

Kardam Devhuti कर्दम ऋषि की कथा 


Part-1
Kardam Devhuti कर्दम ऋषि की कथा

श्री विदुरजी ने श्री मैत्रेयजी से पूछा कि हे भगवन् । मुझे स्वायंभुव मनु के द्वारा मैथुन धर्म से जो सृष्टि का विस्तार किया गया उसके सम्बन्ध में बतायें। आपने बताया था कि स्वायंभुव मनु के दो पुत्र – प्रियव्रत तथा उत्तानपाद हुए। उनकी तीन पुत्रियाँ देवहूति, आकृति तथा प्रसूति हुई थीं। 

इन तीनों कन्याओं का विवाह क्रमशः कर्दम ऋषि, रुचि ऋषि तथा दक्ष के साथ हुआ था। इन तीनों कन्याओं द्वारा कितनी संतानें उत्पन्न हुई - इसके बारे में विस्तार से बताने की कृपा करें।

स्वायम्भुवस्य च मनोर्वशः परमसम्मतः ।

कथ्यतां भगवान् यत्र मैथुनेनैघिरे प्रजाः ।।

श्रीमद्भा० ३/२१/१

श्री मैत्रेयजी ने कहा कि हे विदुरजी! एक बार ब्रह्माजी ने कर्दम ऋषि से सृष्टि करने को कहा तो वे श्रीकर्दमजी सरस्वती नदी के तट पर चले गये। 

वहाँ जाकर उन्होंने एक हजार वर्षों तक तपस्या की। 

नकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् ने उन्हें दर्शन दिया। भगवन् के अदभुत सौंदर्य को देखकर कर्दम ऋषि उनकी स्तुति करने लगे। उन्होंने कहा आप तो विषय सुख चाहनेवाले की मनोकामना भी पूर्ण करते हैं।

 मुझे ब्रह्माजी से सृष्टि करने का आदेश हुआ है और बिना गृहस्थ आश्रम के सृष्टि नहीं हो सकती। इसलिए मैं एक सुन्दर, सुशीला, प्रियवादिनी पत्नी की कामना करता हूँ। ब्रह्मा जी की आज्ञा के पालन के लिए मेरी प्रार्थना स्वीकार की जाय।

श्री कर्दम ऋषि की विनयपूर्वक की गयी प्रार्थना से प्रसन्न होकर प्रभु ने मधुर वाणी में मुस्कुराते हुए उनसे कहा कि तुम्हारे मन की बात जानकर मैंने तुम्हारे लिए पत्नी की व्यवस्था कर दी है। मेरी आराधना व्यर्थ नहीं जाती। 

ब्रह्मा के पुत्र मनु और उनकी पत्नी शतरूपा अपनी कन्या देवहूति को लेकर तुम्हारे पास आयेंगे, विवाह के लिए प्रस्ताव करेंगे और आग्रह भी करेंगे । देवहूति राजयोग प्राप्त करानेवाली कन्या है। उसे तुम स्वीकार कर लेना। 

देवहूति से तुम्हें नौ पुत्रियाँ होंगी। अन्त में अपने अंश रूप में देवहूति के गर्भ से मैं उत्पन्न होकर सांख्यशास्त्र की रचना करूँगा। यह कहकर भगवान् अन्तर्धान हो गये ।

Kardam Devhuti कर्दम ऋषि की कथा 

शास्त्र में है कि पृथ्वी पर चार सरोवर प्रसिद्ध हैं १. मानसरोवर २. विन्दुसरोवर ३. पम्पा सरोवर ४. नारायण सरोवर । बिन्दु सरोवर गुजरात के कच्छभुज में है। सिद्धपुर स्टेशन से वहाँ जाया जाता है। इसी बिन्दु सरोवर के तट पर अपने आश्रम में कर्दम ऋषि ने मनु - शत्रूपा एवं उनकी कन्या देवहूति की प्रतीक्षा करने लगे। 

आश्रम की प्राकृतिक छटा बड़ी ही रमणीय थी । 

पक्षी कलरव कर रहे थे। उसी समय मनु शतरूपा अपनी कन्या देवहूति के साथ कर्दम ऋषि के आश्रम पर पहुँचे और उन्हें प्रणाम निवेदित किया । कर्दमजी ने अच्छी तरह सत्कार कर उन्हें आसन पर बैठाया ।

मनु ने कहा कि मेरी पुत्री ने नारदजी से आपका गुणगान सुना है। उसी समय से यह आपको वरण करना चाहती है। यह गार्हस्थ्य धर्म भी जानती है और आपके अनुरूप भी है। 

आप कृपया इसे स्वीकार करें। बिना परिश्रम या प्रयास के जो सुख-सुविधा प्राप्त हो जाती है, उसे विरक्त पुरुष भी स्वीकार कर लेते हैं। आप तो ऋषि हैं । अतः आप मेरी कन्या को स्वीकार करें। कर्दमजी ने कहा कि आपकी पुत्री अपूर्व सुन्दरी है। 

अपने अंगों की शोभा से आभूषणों को भी मात कर रही है। इसके गुणों को मैं जानता हूँ । एक दिन यह कन्या अपनी अटारी पर गेंद खेल रही थी तो इसके अनुपम सौंदर्य को देखकर विश्वावसु गन्धर्व मूर्च्छित होकर विमान से गिर गया था। 

अतः यह आपकी कन्या मुझे ग्रहण योग्य है । इसके बाद उचित मुहूर्त में कर्दमजी ने वैदिक रीति से देवहूति के साथ विवाह के लिए अपनी सम्मति दे दी। उन्होंने कहा कि जबतक सन्तति नहीं होगी, तबतक मैं गृहस्थ आश्रम में रहूँगा। सन्तति हो जाने के बाद परमहंसों की वृत्ति धरण कर भगवान् का भजन करूँगा।

कर्दमजी ने देवहूति के साथ वैदिक रीति से विवाह किया। विवाह में दहेज के रूप में मनु ने बहुत तरह के वस्त्र एवं आभूषण दिये । 

इधर माता-पिता के चले जाने के बाद देवहूति अपने स्वामी कर्दमजी की सेवा में संलग्न हो गयी।  अनेक व्रत करने से दवेहूति पतली हो गयी थी। 

Kardam Devhuti कर्दम ऋषि की कथा 

कर्दमजी ने देवहूति को कृशकाय देखकर कहा कि अत्यधिक सेवा, व्रत करके दुबली हो गयी हो, मैं तुम्हारी सेवा से अत्यधिक प्रसन्न हूँ।

तुष्टोहमद्य तव मानवि मानदायाःशुश्रूषया परमया परया च भक्त्या

यो देहिनामयमतीव सुह्रत्स्वदेहो नावेक्षितः समुचितः क्षपितु  मदर्थे ।।

मेरी सेवा से तुम्हें अलौकिक शक्ति प्राप्त हुई है। मैं तुम्हें दिव्य दृष्टि देता हूँ। अब तुम्हें कोई कष्ट नहीं होगा। देवहूति बहुत प्रसन्न हुई। लज्जा की ललिमा से उसका मुखमंडल चमक उठा। 

मुस्कुराती हुई गद्गद वाणी में बोली कि हे स्वामिन् ! विवाह के समय आपने जो प्रतिज्ञा की थी, उसका स्मरण करें। 

शास्त्रानुसार गृहस्थ जीवन के साधनों का निर्माण करें। 

मैं दुर्बल हो गयी हूँ। अतः ऐसी व्यवस्था हो कि नैं गृहस्थ जीवन में समर्थ हो सकूँ। इसप्रकार मैत्रेयजी ने विदुरजी से कहा-

'प्रियायाः प्रियमन्विच्छन् कर्दमो योगमास्थितः । विमानं कामगं क्षत्तस्तर्हो वाविरचीकरत् ।।

श्रीमद्भा० ३.२३.१२

प्रिय पत्नी देवहूति की इच्छा की पूर्ति के लिए कर्दमजी ने अपनी योगशक्ति से तत्क्षण कामग विमान की रचना की। वह कामग विमान मणियों के सैकड़ों स्तम्भों से सुशोभित था। उसमें नीलम जड़ा फर्श था। स्फटिक की दीवारें थीं। वैदूर्य की देहलियाँ थीं। 

हीरा जड़ित किवाड़ थे। नील मणियों के शिखर थे। उसके ऊपर स्वर्ण के कलश बैठाये गये थे। उस विमान में क्रीडास्थल, शयनकक्ष, रतिकक्ष, भोजन कक्ष सबकुछ उपलब्ध था। जैसी ऋतु की इच्छा हो, वैसा ही मौसम बन जाता था। वह विमान कर्दमजी की तपस्या का उदाहरण था। 

इतनी सुविधाएँ उपलब्ध होने पर भी कर्दमजी ने देवहूति को प्रसन्न नहीं देखा। कर्दमजी देवहूति की भावना को ताड़ गये। उन्होंने देवहूति से विन्दु सरोवर में स्नान करने को कहा। देवहूति के गोता लगाते ही सरोवर से कमल गंध से सुवासित पन्द्रह वर्ष की एक हजार युवतियाँ देवहूति की सेवा में खड़ी हो गईं। 

उनलोगों ने देवहूति को सुगन्धित उबटन लगाकर स्नान कराया। दिव्य वस्त्र तथा आभूषण पहनाया और दिव्य पान तथा भोजन से देवहूति को तृप्त किया। 

उस समय देवहूति की सुन्दरता रति को भी मात कर रही थी वहाँ से विमान उड़ा कर्दमजी ने देवहूति को कामग विमान से सारे भूमण्डल में भ्रमण कराया।

Kardam Devhuti कर्दम ऋषि की कथा 




एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!