भागवत कथा का महत्व shrimad bhagwat mahatmya

 भागवत कथा का महत्व shrimad bhagwat mahatmya

भागवत कथा का महत्व shrimad bhagwat mahatmya


गोकर्ण जी उपदेश पिताजी को दे रहे धुंधकारी को उपदेश नहीं दिया धुंधली को उपदेश नहीं दिया क्यों क्योंकि जो समझने योग्य है जिस जो आपकी बात को समझ ले और उसको फॉलो कर ले आपको उसी को उदेश उपदेश देना चाहिए एक बहुत छोटा सा दृष्टांत आता है कि अगर वो धुंधकारी को उपदेश देते तो क्या होता कि ये होता कि गोकर्ण जी खुद परेशानी में फस जाते ।

तो हमें ंद कारी जैसे लोगों को भी उपदेश देने से कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा भले ही वो आप का अपना बेटा हो आपका अपना भाई हो आपका अपना कोई भी हो आप उसे अपना मान रहे हो और अच्छे के लिए उसे उपदेश दे रहे हो लेकिन वो धुंधकारी है वो पता नहीं आपका उससे किस तरीके का बदला निकाले वो कैसे आपको समझे।

तो छोटा सा एक दृष्टांत आता है कि एक बार बहुत तेज बारिश हो रही थी एक बंदर जो है पेड़ पर आक बैठ गया और ठंड के मारे कांप रहा था बारिश में भीगा हुआ था तो एक छोटी सी चिड़िया ने उसे उपदेश दिया कि मैं तो इतनी छोटी सी हूं दाना चुनकर लाती हूं और अपना घोंसला बना लेती हूं तुम्हें तो मनुष्य रूपी शरीर प्राप्त हुआ है तुम क्यों नहीं क्या कहते हैं ।

भागवत कथा का महत्व shrimad bhagwat mahatmya

एक घर बना लेते हो तो जो है वो बंदर जो है उसे गुस्सा आ जाती है तो बंदर क्या करता है उस घोसले उसके चिड़िया के को उखाड़ के फेंक देता है तो कहने का तात्पर्य यह है कि ंद कारी के सामने गोकर्ण जी ने उपदेश नहीं दिया जो समझने योग्य है सिर्फ हमें उन्हें ही उपदेश देना है तो हर एक उस पिता के लिए उपदेश है कि आप कर्तव्य से जल्दी निवृत हुई है और फिर आगे वैराग्य धारण कीजिए।

 आप संसार में रहकर भी वैराग्य धारण कर सकते हैं बस अपने अंदर के गौ कर्ण वाले जो पुत्र है उसको पालिए जो धुंधकारी पुत्र है उसको शांत करिए और चुपचाप से साइड में रख दीजिए और जो गोकर्ण पुत्र है उसकी बात सुनिए उसके उपदेश को सुनिए उसको उसका लालन पालन करिए तो आप संसार में रहते हुए भी ग्र वैराग्य धारण कर सकते हैं।

 बहुत आसान होता है जो लोग आपके पास आते हैं इधर उधर की बातें करने के लिए उनसे बोलिए कि आज हमारे कानों का व्रत है हमें किसी की बुराई नहीं सुननी है ठीक है तो जो लोग आप आप लायक होंगे वही आकर आपकी बात सुनेंगे और जो नहीं आपके आपकी बात को सुनना पसंद करेंगे वह आपके पास आएंगे भी नहीं तो हमें ऐसे लोग चाहिए भी नहीं आएंगे हमारे प्रभु की बात सुनेंगे हमारे भागवत की बात सुनेंगे वेलकम और नहीं नहीं तो भीड़ कम ।

तो बहुत अच्छी बात है ना तो अब क्या करते हैं यह जो है बताते हैं गोकर्ण जी कि हमारे पास अगर कुछ भी है उसको खोने का डर है तो हम उसे अपना माने ही क्यों जैसे गोकर्ण जी बोलते हैं कि संसार में जितने भी पदार्थ है अगर आप उनमें आसक्त रहेंगे तो आपको उनको खोने का भह रहेगा।

 चाहे वह आपके शरीर से जुड़े हुए हो या आपके संबंधों से जुड़े हुए हो जैसे कि अगर भोग है तो रोग का भय है अगर आपके पास रूप है तो वृद्धावस्था आने का वह है अगर आप शास्त्रार्थ करते हैं ज्ञानी है तो आपका झगड़े का वह है कि झगड़े में ना फस जाए और अगर आप शांत रहने वाले हैं मौन रहने वाले हैं तो दैन्य का भय है। 

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अगर आप बलवान है तो आपके शत्रु भी बन सकते हैं तो कहने का मात्र एक यही है जो वैरागी है ना जिसे किसी से मतलब नहीं है उसने अपना उद्देश्य जान लिया है कि मुझे इस आत्मा रूपी जो जीव है ये परमात्मा का ही अंश है और मेरा जो लास्ट उद्देश्य परमात्मा को प्राप्त करना है या कर्म बंधनों में फसक नहीं सिर्फ उत्तरदायित्व और कर्तव्यों को पूर्ण करते हुए मुझे जो है मोक्ष को प्राप्त होना है या अपना अगर मोक्ष भी प्राप्त नहीं होता है ना तो दुख की बात नहीं है इस बात को चैलेंज मत करो कि मुझे मोक्ष प्राप्त हो जाएगा। 

अच्छी बात यह है कि एक तो दिमाग शांत रहेगा

स्ट्रेस फ्री रहेगा दिमाग स्ट्रेस नहीं मिलेगा आपको दूसरा अच्छी बात ये है कि अगला जन्म तो सुधरेगा कम से कम तो अब भक्ति जो है ना भक्ति में बहुत शक्ति होती है भक्ति जो है अभय वरदान देती है किसी चीज का भय नहीं देती है। 

अभी कहा ना हर चीज में आप सांसारिक जितने भी पदार्थों से प्रेम रखेंगे तो आपको भह रहेगा अगर मेरे मेरा पति मुझे बहुत प्यार करता है तो मुझे बह रहेगा कभी कहीं क ऐसा ना हो कि इसका कहीं और दूसरी जगह आ सक्ति हो जाए कहीं ऐसा ना हो ये मुझे छोड़ के ही चला जाए है ना और अगर मेरा बेटा है मुझे बहुत प्यार करता है तो इसकी शादी हो जाएगी।

कहीं ऐसा ना हो कि ये अपनी वाइफ को ज्यादा इंपोर्टेंस दे 

तो हर चीज से आप जिससे जुड़ेंगे और प्यार करेंगे उसको खोने का डर रहेगा लेकिन भक्ति एक ऐसी है जिससे आप जुड़ेंगे तो वो आपको अभय वरदान देगी भक्ति के अभय वरदान से याद आता है कि भक्त माल में एक बहुत प्यारा सा चरित्र है करमती बाई का।

 जो कि सीकर जिले में खंडो सीकर जिले में खंडेल खंडेला नाम की जगह थी वहां की रहने वाली थी ये राज पुरोहित थी उनकी बिटिया थी श से इन्होंने इनके घर का जो वातावरण था पूजा पाठ वाला था पुरोहित जी थे तरी तरीके के शास्त्र पढ़ते थे यह भी शास्त्र पढ़ती थी बहुत ज्ञानी थी लेकिन अब इनकी जब शादी हो गई तो जैसे छोटी उम्र में शादी हो गई जब इनकी थोड़ी उम्र बढ़ी तो इनका गौने का टाइम आया जिस दिन इनके पति इनको लेने आए थे गौने का टाइम था उसी रात को यह घर से भाग गए। 

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श्री कृष्ण भक्ति में लीन होकर और ये ये देखिए भक्ति अभय वरदान देती है इस बात से से इस दृष्टांत को यहां मैं बताना चाह रही थी कि तीन दिन तक ये मरे हुए ऊंट की खाल में बैठी रही कि इनको कोई ढूंढ ना पाए जहां स्थिति में बैठना क्या खड़े होना भी दुश्वार हो जाता इतनी बदबू आ रही हो वहां पर ये बैठी रही तीन दिन तक। 

तो कितना अभय था जंगल में बैठी रही है इनको ना किसी जानवर का डर ना किसी इनको किसी भी चीज का डर नहीं इतना अभय था और फिर संतों के साथ में पैदल पैदल वृंदावन तक पहुंची इन्होंने अपनी यात्रा तय करी और व जब इनके पति और वो राजा भी पहुंचे ना लेने के लिए पिता इनके पहुंचे तो वहां से इन्होंने मना कर दिया कि मैं अब एक बार कृष्ण की हो गई अब किसी दूसरे की हो नहीं सकती ।

तो ये कमती बाई का जो मैंने यहां पर दृष्टांत बताना सही समझा वो ये था कि भक्ति जो है अभय वरदान देती है तो भक्ति में तो आप जितना लीन हो जाएंगे ना अपने आप में इतने स्ट्रांग हो जाएंगे कि आपको जरूरत ही नहीं पड़ेगी कि किसी और की अगर ठीक है मेरे पास खाने की कमी हो गई तो संतुष्टि मिलेगी मुझे भगवान संतु दृष्टि देगा पैसे की कमी हो गई तो कम में गुजारा करना सीख लूंगी लेकिन भगवान से दूर हो गई तो सब कुछ होने के बाद भी ना रात को नींद की गोली खाके सोनी पड़ेगी। 

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