गणेश चरित्र ganesh charitra in hindi
( गणेश चरित्र )
अधुना श्रोतुमिच्छामि गाणेशं वृत्तमुत्तमम्।
तज्जन्मचरितं दिव्यं सर्वमंगलमंगलम्।। 13-3
अब मैं गणेश जी का उत्तम चरित्र सुनना चाहता हूं ,उनका जन्म एवं चरित्र दिव्य तथा सभी मंगलों का भी मंगल करने वाला है। उन महा मुनि नारद का यह वचन सुनकर ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर शिवजी का स्मरण कर कहने लगे-
कल्पभेदाद् गणेशस्य जनिः प्रोक्ता विधेः परात्।
शनिदृष्टं शिरश्छिन्नं संचितं गाजमाननम्।। 13-5
कल्पभेद से गणेश जी का जन्म ब्रह्मा जी से भी पहले कहा गया है। एक समय शनि की दृष्टि पड़ने से उनका सिर कट गया और उन पर हाथी का सिर जोड़ दिया गया।
गणेश चरित्र ganesh charitra in hindi
अब मैं श्वेत कल्प में जिस प्रकार गणेश जी का जन्म हुआ था उसे कह रहा हूं। जिसमें कृपालु शंकर ने ही उनका शिरोछेदन किया था।
हे मुने शंकर जी सृष्टि कर्ता हैं इस विषय में संदेह नहीं करना चाहिए। वह सगुण होते हुए भी निर्गुण है। अब आदर पूर्वक चरित्र को सुनिए- शिवजी विवाह के उपरांत जब कैलाश पर गए तो कुछ समय व्यतीत होने पर गणेश का जन्म हुआ।
एक समय की बात है जया और विजया नामक पार्वती की दो सखियों ने परस्पर विचार कर पार्वती जी से कहा - कि शंकर जी के द्वार पर जो गण खड़े रहते हैं, उन पर अधिकार होते हुए भी कुछ अधिकार नहीं है हमारा । क्योंकि हमारा मन उनसे नहीं मिलता।
गणेश चरित्र ganesh charitra in hindi
अतः हे भगवती एक हमारा भी कोई गण होना चाहिए, आप उसकी रचना करिए। देवी पार्वती को सखियों की यह बात प्रिय लगी और उन्होंने उसकी रचना की इच्छा की ।
जब एक समय पार्वती स्नान कर रही थी और नंदी द्वार पर बैठा हुआ था, तब उनके मना करने पर भी शिवजी हटात मंदिर में प्रवेश कर गए, जिससे लज्जित हो जगदंबिका तुरंत उठ बैठी । तब उन्हें अपनी सखी का वचन याद आया और परमेश्वरी ने अपना कोई एक अत्यंत श्रेष्ठ सेवक की आवश्यकता लगी।
उन्होंने सोचा कि मेरा कोई ऐसा सेवक हो जो मेरी आज्ञा से कभी विचलित ना हो। तब भगवती ने-
विचार्येति च सा देवी वपुषो मल संभवम्।
पुरुषं निर्ममौ सा तु सर्व लक्षण संयुतम्।। 13-20
इस प्रकार विचार कर देवी ने अपने शरीर के मैल से सर्व लक्षण संपन्न समस्त सुंदर अंगों वाले पुत्र गणेश को प्रकट किया और पार्वती जी ने उसे अनेक प्रकार के वस्त्रों से सजा कर आशीर्वाद दिया कि तुम मेरे प्रिय पुत्र हो।
गणेश जी ने कहा माताजी मेरे लिए क्या आज्ञा है ? पार्वती जी ने कहा तुम मेरे द्वार रक्षक बनो, मेरी आज्ञा के बिना कोई कैसा भी क्यों ना हो घर के भीतर ना आने पावे। कितना भी कोई हट क्यों ना करे। ऐसा कह कर पार्वती जी ने गणेश जी के हाथ में एर लकड़ी दे दी और प्रेम पूर्वक द्वार पर बिठा दिया ।
वह लकड़ी ले गणेश जी माता के हितार्थ द्वार पर जा बैठे, तब पार्वती जी फिर जा स्नान करने लगी । इसी समय अनेक प्रकार की लीलाएं करने में प्रवीण वे शिव जी द्वार पर आ पहुंचे । तब गणेश ने उन शिवजी को बिना पहचाने कहा- हे देव इस समय माता की आज्ञा के बिना आप भीतर नहीं जा सकते, माता जी स्नान कर रही हैं और उन्हें रोकने के लिए द्वार में अपनी लाठी लगा दिए।
उसे देखकर शिवजी बोले तुम किसे मना कर रहे हो ? तुम मुझे नहीं जानते मैं शिव हूं कोई दूसरा नहीं। इस प्रकार शिवजी बोलकर हट पूर्वक अंदर जाने लगे तो, गणेश जी ने उन पर लाठी से प्रहार किया। तब लीला करने वाले शिवजी कुपित होकर पुत्र से कहा-
हे बालक मैं तो अपने ही घर जा रहा हूं , तुम मुझे मना क्यों करते हो ? ऐसा बोलकर महादेव पुनः घर में प्रवेश करने के लिए बड़े तो, गणनायक गणेश ने क्रोध करते हुए पुनः डंडे से प्रहार किया।
तब महादेव क्रोधित होकर गणों से कहा-
हे गणों देखो यह कौन है ? और यहां क्या कर रहा है ? वह गणेश जी की आज्ञा से वहां जाकर द्वारपाल से उसका परिचय पूछने लगे और कहने लगे यदि तू जीना चाहता है तो यहां से दूर हो जा। परंतु गणेश जी बोले तुम हट जाओ मैं नहीं हटने वाला ।
गणेश चरित्र ganesh charitra in hindi
शिव जी के गण भगवान के पास लौट कर सब बात बताएं कि वह कहता है कि मैं पार्वती का पुत्र हूं कदापि नहीं हट सकता । तब शिवजी अपने गणों को भी डाटा कि तुम लोग जाकर उसे हटाओ शीघ्र। गण फिर से पहुंचकर गणेश जी को हटाने के लिए धमकाने लगे, इतने में द्वार पर हल्ला सुनकर पार्वती ने अपनी एक सखी को भेजा कि देख वहां क्या हो रहा है ?
सखी ने देखकर हर्षित हो पार्वती से सब वृत्तांत कहा और कहा अच्छा हुआ जो उन्होंने घर के अंदर आने नहीं दिया। अन्यथा शिवजी तो हमेशा बिना कहे सुने अंदर घुस आया करते थे।
देवी आपको अपना मान नहीं छोड़ना चाहिए । पार्वती जी ने कहा ठीक है, परंतु यह भी तो देखो सखी क्षण भर भी मेरे पुत्र को द्वार पर खड़े नहीं हुए हुआ कि आकर शिवगण उसे छेड़ने लगे, तो फिर मैं विनय और नम्रता क्यों अपनाउं ? जो होगा देखा जाएगा।
गणेश चरित्र ganesh charitra in hindi
इधर बहुत प्रयास करने पर भी शिव गण गणेश जी को द्वार से ना हटा सके, तब वह लौटकर भगवान शंकर के पास गए। यह सुनकर शिवजी लौकिकी गति का आश्रय ले अपने गणों से बोले- वह अकेला गण तुम सबके आगे क्या पराक्रम दिखाएगा ?
हट करके पार्वती उसका फल अवश्य प्राप्त करेगी । इसलिए हे वीरो तुम सब मेरी बात सुनो, तुम लोग अवश्य युद्ध करो । जो होनी होनी होगी वह तो होकर ही रहेगी, ऐसा कह कर के महादेव चुप हो गए।