mahakal ki mahima in hindi महाकाल महिमा

mahakal ki mahima in hindi महाकाल महिमा

mahakal ki mahima in hindi महाकाल महिमा

सूतजी बोले- ब्राह्मणो ! श्री महाकालेश्वर की उत्पत्ति तो मैंने आपको सुना दी अब उनकी महिमा सुनाता हूँ । उज्जैन नामक नगरी में चन्द्रसेन राजा थे । 

इसी चन्द्रसेन राजा की सदाशिव के मुख्य सेवक मणिभद्र के साथ घनी मित्रता थी । एक बार मणिभद्रजी चन्द्रसेन राजा पर प्रसन्न हो गये, तब राजा के प्रति उन्होंने अपनी सूर्य के समान चमकती कौस्तुभ मणि प्रदान कर दी । तब तो वह राजा उस मणि को गले में धारण करके सूर्य के समान चमकने लगा । 

उस मणि को राजा के पास देखकर अन्य राजा ईर्ष्या करते हुए अनेक उपायों से मणि को हथियाने की चेष्टा करने लगे । राजा के पास आकर उन्होंने वह मणि माँगी भी। राजा ने सभी को फटकार दिया तब क्रोध में आकर राजाओं ने युद्ध की तैयारी कर ली । 

अपनी-अपनी चतुरङ्गिणी सेना लेकर राजा पर चढ़ाई कर दी । यह देखकर उस राजा ने महाकालेश्वर महादेवजी की शरण ली । ठीक उस समय एक गोपी आई उसकी गोद में ५ वर्ष का बालक था । 

गोपी विधवा थी । वह दोनों वहाँ बैठकर राजा सहित शिव-पूजन को देखने लगे । राजा द्वारा शिव-पूजन को भली भाँति देखकर उस बालक को लेकर गोपी अपने घर चली आई । 

उस पाँच वर्ष के बालक के मन में आया कि राजा की भाँति शिव-पूजन करूँ, तब तो कहीं से वह पत्थर ढूँढ़ लाया, उसे घर में स्थापित करके गन्ध, पुष्प, धूप, नैवेद्य आदि का मन में विचार करके वैसे ही पूजन करने लगा, इतने में गोपी ने स्नेह करके उसे भोजन के लिये बुलाया । 

परन्तु बालक तो शिव-पूजन कर रहा था । 

माता को क्या मालूम था कि बालक क्या कर रहा है बालक ने माता का बुलाना सुना ही नहीं, तब माता बालक के लिए स्वयं वहाँ पहुँची तो देखा कि बालक आँखें बन्द किये आसन पर बैठा है । 

गोपी ने उसे पकड़ कर खींच लिया और उसे फटकारने लगी, बालक के सामने रखे हुए पूजा के पत्थर को उठाकर कहीं फेंक दिया और उसे खींचकर घर में ले गई तब तो वह पाँच साल का बालक व्याकुल होकर शिव-शिव करता हुआ दुःखी होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा और उसके होश जाते रहे । 

उसकी माता ने जब पुत्र की यह दशा देखी तो उसके भी होश जाते रहे । कुछ समय बीत जाने पर जब बालक को चेतना आई और उसने आँखें खोलकर देखा कि मैं महाकाल भगवान शिव के अत्यन्त सुन्दर मन्दिर में बैठा हूँ और इस मन्दिर के मध्य में सदाशिव का रत्नमय ज्योतिलिङ्ग स्थिर है । 

ऐसा देखकर आश्चर्य करता हुआ वह सदाशिव को बारम्बार प्रणाम एवं प्रार्थना करता हुआ अपने मन में अत्यन्त प्रसन्न हुआ और भगवान शिव का ध्यान करता वह अपने घर की ओर गया । 

वह अपने रहने का बहुत सुन्दर घर देखकर आश्चर्य में पड़ गया, फिर  माता की ओर देखा उसकी माता तो अमूल्य भूषण धारे रत्नजड़ित पलङ्ग पर सो रही थी । 

तब बालक ने प्रसन्न होकर माता को जगाया और उसे सदाशिव की प्रसन्नता का समाचार सुनाया । गोपी यह सुन तथा देखकर प्रसन्न हो गई । 

उधर जब राजा के शिव-पूजन का नियम पूर्ण हुआ तो गोपी पर शङ्करजी की कृपा का समाचार राजा को मालूम हो गया, राजा भी अपने मन्त्रियों को साथ लेकर अपने गोपी के घर पहुँचा । वहाँ भगवान शङ्कर की कृपा का प्रभाव देखकर उसके आश्चर्य की सीमा न रही । 

राजा एवं अन्य लोगों ने मिलकर रातभर बड़ा भारी उत्सव किया । 

प्रातःकाल यह समाचार नगर भर में फैल गया । गोपी के घर भगवान शङ्करजी का दर्शन करने नगर भर के लोग आने लगे। चन्द्रसेन राजा पर चढ़ाई करने वाले राजाओं ने भी यह बात सुन ली । उन्होंने मान लिया कि इस उज्जैन नगरी पर सदाशिव की कृपा है । 

इस नगरी का महाराज चन्द्रसेन महाकालेश्वर शङ्कर का परम भक्त है, इसको हम कभी भी नहीं जीत सकते । इसके साथ मित्रता कर लेने में ही हमारा कल्याण है । 

इस प्रकार विचार करके अपने अस्त्र शस्त्रादि त्यागकर राजा लोग गोपी के घर शङ्कर के दर्शन करने चले गये, वहाँ बालक की भक्ति सदाशिव का ज्योतिलिङ्ग देखकर सभी आनन्दित हुए । राजा चन्द्रसेनजी के साथ भी उसकी मित्रता हो गई । 

तब वहाँ श्रीहनुमानजी प्रत्यक्ष रूप से प्रकट हो गये जिनकी समस्त देवता पूजा किया करते हैं । उनके सभी राजा लोग चकित होकर प्रेमपूर्वक उनकी पूजा करने लगे । 

उसके बाद श्रीहनुमानजी ने गोपी के बालक को उठाकर अपने गले से लगाया फिर राजाओं की ओर देखकर बोलेराजाओ तथा मनुष्यगण ! सभी चराचर प्राणियों कल्याणकर्ता तो सदाशिव हैं । 

देखो इस गोपी के बालक ने केवल राजा चन्द्रसेन को पूजा करते देखा था । उसने अपने घर आकर उसी विधि से केवल पूजन का अनुकरण किया है उसका परिणाम आप लोगों के सामने है इसका परम कल्याण हुआ है । 

इस लोक में सभी सुख भोगकर अन्त में यह मोक्षपद प्राप्त करेगा इसके कुल में में आठवाँ महायज्ञ पुरुष होगा, जिसका नाम नन्द होगा उसके घर में विष्णु भगवान का अवतार होगा और वह नन्द के पुत्र श्री के कृष्णजी होंगे और आज से इस गोपकुमार की श्रीकर नाम से प्रसिद्धि होगी । 

इतना कहकर श्री हनुमानजी सभी के देखते-देखते वहाँ अन्तान हो गये, आये हुए सभी राजाओं का चन्द्रसेन महाराज ने सत्कार किया । 

राजा लोग प्रसन्न होकर अपनी-अपनी राजधानियों में चले गये । 


उसके बाद ब्राह्मणों के । साथ श्रीकर तथा चन्द्रसेन महाराज ने भगवान महाकालेश्वर शङ्करजी को श्री महादेवजी की आज्ञानुसार विधि पूर्वक पूजन आराधना करना आरम्भ किया । इस लोक के सुख आनन्द भोगकर अन्त में सब को मोक्ष प्राप्त हुआ ।

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